दिल में उट्ठेगा जब तलातुम तो राहतों का ग़ुरूर तोड़ेगा
दिल
में उट्ठेगा जब तलातुम तो राहतों का ग़ुरूर तोड़ेगा
बुझते
बुझते भी ये वजूद मेरा इक धुएँ की लकीर छोड़ेगा
हश्र
बरपा करेगा सीने में ज़ख़्मी जज़्बात को झिंझोड़ेगा
ये
तग़ाफ़ुल तेरा जो हद से बढ़ा, मेरे दिल का लहू निचोड़ेगा
आज
ये बेतकाँ उड़ान मेरी किस बलन्दी पे मुझको ले आई
क्या
ख़बर थी कि ये जुनून मेरा मेरा रिश्ता ज़मीं से तोड़ेगा
किसकी
परवाज़ इतनी ऊँची है, किसकी हिम्मत में वो रवानी है
कौन
डालेगा आस्माँ पे कमंद, कौन मौजों के रुख़ को मोड़ेगा
वो
नहीं कोई रेत का ज़र्रा जिसको तूफ़ान ज़ेर-ओ-बम कर दे
वो
तो “मुमताज़” बहता पानी है पत्थरों पर निशान छोड़ेगा
तलातुम
–
लहरों के थपेड़े, हश्र – प्रलय, तग़ाफ़ुल – बेरुख़ी, बेतकाँ – अनथक, परवाज़ – उड़ान, रवानी – बहाव, कमंद – ऊपर चढ़ने की रस्सी, मौजों के – लहरों के, ज़र्रा – कण, ज़ेर-ओ-बम – उलट पलट
बहुत खूबसूरत, रूहानी एहसासों से लबरेज़
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