ये तूफ़ान-ए-हवादिस, बारिशें ये संगपारों की
ये
तूफ़ान-ए-हवादिस, बारिशें ये संगपारों की
भटकती
रह गईं वादी में चीख़ें संगसारों की
हवा
में तैरते ये धूल के बादल भी शाहिद हैं
यहीं
से हो के गुज़री थी वो टुकड़ी शहसवारों की
दुआएँ
माँगता रहता है ये तपता हुआ सहरा
नज़र
इस सिम्त भी तो हो कभी इन अब्रपारों की
सुना
है बिक रही है आजकल उल्फ़त दुकानों में
चलो
देखें ज़रा, क़ीमत लगी क्या इफ़्तेख़ारों की
ये
कैसा जश्न है “मुमताज़” इस लाशों की बस्ती में
बहुत
होती है आराइश जो इन उजड़े मज़ारों की
तूफ़ान-ए-हवादिस
–
हादसों का तूफ़ान, संगपारों की – पत्थर के
टुकड़ों की, संगसार – जिसको पत्थर से मारा
जाए, शाहिद – गवाह, सहरा – रेगिस्तान, अब्रपारों की
– बादल के टुकड़ों की, इफ़्तेख़ारों की – इज़्ज़तदार लोगों की, आराइश – सजावट, मज़ारों की – क़ब्रों की
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