मेरा वजूद कशाकश का यूँ शिकार रहा
मेरा
वजूद कशाकश का यूँ शिकार रहा
कि
जैसे दिल में सुलगता सा इक शरार रहा
रफ़ीक़ो
छेड़ो न हमसे ये ऐतबार की बात
हर
ऐतबार का रिश्ता बे ऐतबार रहा
अना
ने हमको उठा तो दिया था उस दर से
कहीं
भी हमको न फिर उम्र भर क़रार रहा
जो
इक निगाह से सरशार हुई दिल की ज़मीं
तमाम
उम्र यहाँ मौसम-ए-बहार रहा
वही
थी दश्त नवर्दी, वही थी वहशत-ए-दिल
तमाम
उम्र हमारा यही शआर रहा
नशे
में डूबी हुई एक शाम पाई थी
न
जाने कितने दिनों तक वही ख़ुमार रहा
बिछड़
के उससे भी जीना था एक मुद्दत तक
हमारी
जाँ पे मोहब्बत का इक उधार रहा
बिछड़
के हमसे कहाँ चैन से रहा वो भी
हमारी
याद में वो भी तो बेक़रार रहा
ख़ुदी
में सिमटे तो हम इस जहाँ से कट ही गए
हमारी
ज़ात पे “मुमताज़” इक हिसार रहा
कशाकश
–
खींचा तानी, शरार – अंगारा, रफ़ीक़ो – साथियो, ऐतबार – भरोसा, अना – अहं, सरशार – नशे में चूर, दश्त नवर्दी
– जंगल में भटकना, वहशत-ए-दिल – दिल की घबराहट, शआर – ढंग, हिसार – घेरा
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