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ज़मीन-ए-दिल पे यादों का हसीं मौसम निकलता है

ज़मीन-ए-दिल पे यादों का हसीं मौसम निकलता है हमेशा होती है बारिश , जो वो एल्बम निकलता है लहू को ढालना पड़ता है मेहनत से पसीने में बड़ी मुश्किल से उलझी ज़िन्दगी का ख़म 1 निकलता है तरक़्क़ी के तक़ाज़ों के तले ऐसा दबा है वो मरीज़-ए-ज़िन्दगी का रफ़्ता रफ़्ता दम निकलता है मोहब्बत नफ़रतों में आजकल हल 2 होती जाती है लहू रिश्तों का होगा , अब ज़ुबां से सम 3 निकलता है हज़ारों वार कर कर के निचोड़ा है लहू पहले जिगर के ज़ख़्म पर मलने को अब मरहम निकलता है ज़रा एड़ी की जुम्बिश 4 से ज़मीं मुंह खोल देती है जो शिद्दत 5 तश्नगी 6 में हो , तो फिर ज़मज़म 7 निकलता है ज़रा सी बात की कितनी सफ़ाई दे रहे हैं वो मगर मतलब तो हर इक बात का मुबहम 8 निकलता है वतन के ज़र्रे ज़र्रे को पिलाया है लहू हम ने " ये रोना है कि अब ख़ून-ए-जिगर भी कम निकलता है" ये जुमला हम नहीं , अक्सर सभी एहबाब 9 कहते हैं अजी "मुमताज़" के अशआर 10 से रेशम निकलता है 1. उलझन , 2. Mix, 3. ज़हर , 4. हरकत , 5. तेज़ी , 6. प्यास , 7. मक्का में मौजूद मुसलमानों का पवित्र कुआँ , 8

अजमेर वाले ख़्वाजा कर दो करम ख़ुदारा

अजमेर वाले ख़्वाजा कर दो करम ख़ुदारा चमका दो आज मेरी तक़दीर का सितारा दुनिया में मुफ़लिसों का कोई नहीं सहारा जाएंगे अब कहाँ हम दामन यहीं पसारा सदक़ा नबी का मुझ को ख़्वाजा पिया अता हो झोली में मेरी भर दो हस्नैन का उतारा छंट जाए मेरे दिल से बातिल का सब अंधेरा नज़र-ए-करम का ख़्वाजा हो जाए इक इशारा अब तुम नहीं सुनोगे तो कौन फिर सुनेगा आ कर तुम्हारे दर पर मँगतों ने है पुकारा इक पल में दूर कर दी मेरी शिकस्ता हाली क़िस्मत मेरी बना दी ये है करम तुम्हारा कब से खड़े हैं दर पर हम रंज-ओ-ग़म के मारे इब्न-ए-सख़ी हो ख़्वाजा दामन भरो हमारा पहुंचा दिया है मुझ को क़िस्मत ने तेरे दर पर अब मेरी ज़िंदगी को मिल जाएगा सहारा आए हैं तेरे दर पर तक़दीर के सताए टूटे हुए दिलों को तेरे दर का है सहारा तूफ़ान में फंसी है मेरी शिकस्ता कश्ती कश्ती को मेरी ख़्वाजा दिखलाओ अब किनारा

हर सवाली का है नारा पिया ग़ैबन बाबा

हर सवाली का है नारा पिया ग़ैबन बाबा मोरबी में है गुज़ारा पिया ग़ैबन बाबा मिट गई पल में मेरी सारी मुसीबत यारो जब अक़ीदत से पुकारा पिया ग़ैबन बाबा कब से हैं दर पे पड़े फूटा मुक़द्दर ले कर अब करम कर दो ख़ुदारा पिया ग़ैबन बाबा हम कभी उठ के न जाएंगे तुम्हारे दर से है यक़ीं तुम पे हमारा   पिया ग़ैबन बाबा दर से साइल न तुम्हारे कभी ख़ाली लौटा ये शरफ़ भी है तुम्हारा पिया ग़ैबन बाबा मेरी किस्मत ने बहुत ख़्वार किया है मुझ को मेरा चमका दो सितारा पिया ग़ैबन बाबा साया रहमत का मेरे सर पे रहा है हर दम तेरा एहसान है सारा पिया ग़ैबन बाबा मोरबी वाले पिया बिगड़ी बना दो मेरी इक ज़रा कर दो इशारा पिया ग़ैबन बाबा मेरी तक़दीर की कश्ती है भँवर में उलझी मुझ को मिल जाए किनारा पिया ग़ैबन बाबा डाल दे झोली में हस्नैन-ओ-अली का सदक़ा तेरे मँगतों ने पुकारा पिया ग़ैबन बाबा

ओ हसीना

ओ हसीना देख के क़ातिल तेरी अदाएँ मुश्किल हुआ है जीना जाने चमन , शो ’ ला बदन लहराए तेरा गोरा बदन धड़कन ये दिल की सदा तुझ को देगी दीवाना मुझ को बना कर रहेगी तेरी नज़र की मीना ओ हसीना............. शोख़ी भरी तेरी अदा अंदाज़ तेरा सब से जुदा खोई खोई निगाहें शराबी भीगे हुए तेरे लब ये गुलाबी दिल मेरा तू ने छीना ओ हसीना........... दीवानगी की जुस्तजू सीने में तेरी है आरज़ू दीवानगी मेरी क्या मुझ को देगी आरज़ू मेरी दग़ा मुझ को देगी ये आग दिल की बुझी ना ओ हसीना.................

ऐ शोख़ नज़र

ऐ शोख़ नज़र , ऐ शोख़ अदा आँखों से मुझे पीने दे ज़रा इक राज़ छुपाया था दिल ने आँखों ने कहा , आँखों ने सुना तेरी चाँद जो देखे एक झलक तेरे हुस्न में वो भी खो जाए तू ज़ुल्फ़ अगर बिखरा दे ज़रा तो रात दीवानी हो जाए जब से तू चमन में आया है हर एक कली मुसकाई है तेरी शोख़ नज़र की गर्मी से चंदा की किरन शरमाई है तुझे ढूंढ रही है ठंडी हवा गुल पूछ रहे हैं तेरा पता ऐ शोख़ नज़र.............. बे ख़्वाब सी मेरी आँखों में ख़्वाबों की सुनहरी धूप खिली बल खा के तमन्ना जाग उठी साँसों में तेरी महकार घुली जीवन की अकेली राहों में सौ रंग बिखरते जाते हैं रंगीन हुआ है दिन का समां ख़ुशबू से महकती रातें हैं क़ुर्बान तेरे तक़दीर मेरी सदक़े मैं तेरे ऐ होशरुबा ऐ शोख़ नज़र.............

ये कैसा दर्द है

ये कैसा दर्द है कैसी कसक है ये क्यूँ हर   पल   तेरी   यादें मुझे बेचैन रखती हैं तेरी आँखें मेरे दिल पर वफ़ा का नाम लिखती हैं ये उल्फ़त की तपक है मेरे राहतकदे   में क्यूँ ये उलझन बढती जाती है ये कैसा राब्ता है तेरे एहसास का इस दर्द से   क्यूँ चुभ रही हैं तेरी साँसें मेरे चेहरे पर ख़यालों की धनक है मेरी हस्ती कहाँ गुम होती जाती है अना ख़ामोश क्यूँ है ये जुनूँ को क्या हुआ ज़िद क्यूँ हेरासाँ है ये धड़कन क्यूँ परेशाँ है ये किस शय की खनक है राब्ता-सम्बन्ध , धनक-इंद्र्धनुष , अना-अहम् , जुनूँ-दीवानगी , हेरासाँ-डरी हुई یہ کیسا درد ہے کیسی کسک ہے یہ کیوں ہر پل تری یادیں مجھے بے چین رکھتی ہیں تری آنکھیں مرے دل پر وفا کا نام لکھتی ہیں یہ الفت کی تپک ہے مرے راحت کدے میں کیوں یہ الجھن بڑھتی جاتی ہے یہ کیسا رابطہ ہے ترے احساس کا اس درد سے کیوں چبھ رہی ہیں تیری سانسیں میرے چہرے پر خیالوں کی دھنک ہے مری ہستی کہاں گم ہوتی جاتی ہے انا خاموش کیوں ہے یہ جنوں کو کیا ہوا ضد کیوں ہراساں ہے یہ دھڑکن کیوں پریشاں ہے یہ کس شے ک

न जाने कौन है वो

न जाने कौन है वो अजनबी क्या नाम है उस का न जाने कब से इक एहसास बन कर आ गया है वो ख़यालों पर , तसव्वर पर ज़हन पर छा गया है वो न जाने कौन है वो अजनबी , क्या नाम है उस का घुली रहती है मेरी गरम साँसों में महक उस की मेरे चेहरे पे झुक जाती है साये सी पलक उस की बसा रहता है साँसों में वही मेहताब सा चेहरा कभी सरगोशियों में धड़कनों की लय सुनाता है कभी चुपके से इक उल्फ़त का नग़्मा गुनगुनाता है कभी उस के लबों का लम्स छू लेता है गालों को चुना करती हैं आँखें उस की नज़रों के उजालों को समंदर बनता जाता है मेरी तक़दीर का सेहरा मेरे जज़्बों की धड़कन है मेरी उल्फ़त का दिल है वो तसव्वर है , तख़य्युल है , कि ख़्वाब-ए-मुस्तक़िल है वो न जाने कौन है किस की इबादत करती रहती हूँ किसी एहसास के पैकर से उल्फ़त करती रहती हूँ मेरी तनहाई में रक़्साँ रहे वो अक्स , वो साया