ख़ामुशी से यूँ भी अक्सर हो गए
ख़ामुशी से यूँ भी अक्सर हो गए हादसे अन्दर ही अन्दर हो गए कल झुके रहते थे क़दमों में जो सब आज वो मेरे बराबर हो गए हैं मुसाफ़िर ख़ुद ही अंधी राह के आप कब से मेरे रहबर हो गए मुन्तज़िर है सरफ़रोशी का जुनूँ ख़त्म अब तो सारे पत्थर हो गए खुशबुओं का वो कोई सैलाब था उस को छू कर हम भी अम्बर हो गए बढ़ गई इतनी तमाज़त दर्द की ख़ुश्क अशकों के समंदर हो गए वो भी है " मुमताज़ " ख़ुद से बदगुमाँ वहशतों के हम भी ख़ूगर हो गए خامشی سے یوں بھی اکثر ہو گئے حادثے اندر ہی اندر ہو گئے کل جھکے رہتے تھے قدموں میں جو سب آج وہ میرے برابر ہو گئے ہیں مسافر خود ہی اندھی راہ کے آپ کب سے میرے رہبر ہو گئے منتظر ہے سرفروشی کا جنوں ختم اب تو سارے پتھر ہو گئے خوشبوؤں کا