नाइन-इलेवन
पल वो नौ ग्यारह के , वो मजबूरियों का सिलसिला वो क़यामत खेज़ मंज़र , हादसा दर हादसा मौत ने लब्बैक उस दिन कितनी जानों पर कहा कौन कर सकता है आख़िर उन पलों का तजज़िया हादसा कहते हैं किस शै को , बला क्या चीज़ है डूबना सैलाब ए आतिश में भला क्या चीज़ है मौत से आँखें मिलाने की भला हिम्मत है क्या जिन पे गुजरी थी , ये पूछो उन से , ये दहशत है क्या पूछना है गर तो पूछो बूढ़ी माओं से ज़रा जिन के लख्त ए दिल को उन मुर्दा पलों ने खा लिया उन यतीमों से करो दरियाफ़्त , ग़म होता है क्या लम्हों में रहमत का साया जिन के सर से उठ गया है क़ज़ा का ज़ुल्म क्या , बेवाओं को मालूम है अश्क के क़तरों में पिन्हाँ कौन सा मफ़हूम है क्या बताएं , किस क़दर बदबख्त ये मरहूम हैं जो कफ़न क्या , लाश के रेजों से भी महरूम हैं हैं कई ऐसे भी , जिन की ज़िन्दगी की राह में सिर्फ़ आँसू , सिर्फ़ आहें , सिर्फ़ नाले रह गए जिन की तन्हा रूह के जलते सहीफ़े में तो अब बाब ए हसरत के सभी औराक़ काले रह गए जिस जगह टूटी बला ए नागहाँ अफ़लाक से उस ज़मीं के ज़ख्म अश्कों से सभी धोते रहे उस सिफ़र मै