चेहरा पढ़ लो, लहजा देखो
चेहरा पढ़ लो, लहजा देखो
दिल की बातें यूँ भी समझो
फिर खोलो यादों की परतें
दिल के सारे ज़ख़्म कुरेदो
अब कुछ दिन जीने दो मुझ को
ऐ दिल की बेजान ख़राशो
रंजिश की लौ माँद हुई है
फिर कोई इल्ज़ाम तराशो
सुलगा दो हस्ती का जंगल
जलते हुए बेचैन उजालो
दर्द तुम्हारा भी देखूँगी
दम तो लो ऐ पाँव के छालो
ख़त्म हुई हर एक बलन्दी
ऐ मेरी बेबाक उड़ानो
तंग दिलों की इस बस्ती में
उल्फ़त की ख़ैरात न माँगो
मग़रूरीयत के पैकर पर
मजबूरी के ज़ख़्म भी देखो
हर्फ़ को सच्चे मानी दे कर
लफ़्ज़ों का एहसान उतारो
थोड़ा तो आराम अता हो
ऐ मेरे “मुमताज़” इरादों
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