हर एक याद में जो कहकशां समेट लाए हैं
हर एक याद में जो कहकशां समेट लाए हैं पलक पलक पे कितने ही सितारे झिलमिलाए हैं कहीं न दिल की किरचियों से उस का पाँव ज़ख़्मी हो हम एहतियात से किरच किरच समेट लाए हैं अना की हद के इस तरफ़ न आ सकें सदाएं भी हर एक राब्ता हम अब के बार तोड़ आए हैं ज़मीन तंग जो हुई , तो आरज़ू के वास्ते ज़मीं पे आज हम फ़लक को भी उतार लाए हैं झुका दिया है सर को फिर तेरी रज़ा के सामने तेरी रज़ा पे सर सदा ही ख़म तो करते आए हैं अना की सरज़मीन पर न कोई शहर अब बसे जला के आरज़ूओं का वो शहर छोड़ आए हैं ज़रा सी आँख जो लगी तो चौंक चौंक हम गए परेशां ख़्वाब कैसा उस के दर से ले के आए हैं कहकशां-आकाश गंगा , अना-अहम् , सदाएं- आवाजें , राब्ता- कानटेक्ट , आरज़ू- इच्छा , फ़लक- आकाश , रज़ा- मर्ज़ी , ख़म- झुकाना , परेशां ख्व़ाब- बिखरा हुआ सपना