आज फिर ख़ुद को समेटूँ सोच को परवाज़ दूँ
आज फिर ख़ुद को समेटूँ सोच को परवाज़ दूँ ज़िन्दगी को मोसीक़ी दूँ फिर नया इक साज़ दूँ आज फिर आज़ाद कर दूँ अपनी हर तख़ईल को और तसव्वर के सफ़र को इक नया आग़ाज़ दूँ हर तड़प के साथ आ जाए ये आलम रक़्स में दिल के टुकड़ों को तड़पने का नया अंदाज़ दूँ अपनी हस्ती को जफ़ाओं पर तेरी कर दूँ निसार आ , कि तेरी बेरुख़ी को और भी ऐज़ाज़ दूँ तू कि ऐ मग़रूर फिर राहों पे अपनी गामज़न मैं कि ख़्वाबों के भँवर से फिर तुझे आवाज़ दूँ हर इरादा , हर तमन्ना , हर ख़ुशी तो लुट चुकी क्या तेरी ख़ातिर करूँ मैं , क्या तुझे “ मुमताज़ ” दूँ मोसीक़ी – संगीत , तख़ईल – विचार शीलता , तसव्वर – कल्पना , आग़ाज़ – शुरुआत , आलम – ब्रह्माण्ड , रक़्स – नाच , जफ़ा – बेरुख़ी , निसार – निछावर , ऐज़ाज़ – सम्मान , मग़रूर – घमंडी , गामज़न – चलना