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फ़र्श था मख़मल का, लेकिन तीलियाँ फ़ौलाद की

फ़र्श था मख़मल का , लेकिन तीलियाँ फ़ौलाद की हो न पाएँ हम रिहा , कोशिश रही सय्याद की मरहबा ज़िन्दादिली , सद आफ़रीं फ़न्न-ए-हयात हम जहाँ पहुँचे , नई दुनिया वहाँ आबाद की दाम में आया जुनूँ , अब हसरतों की ख़ैर हो दिल ने फिर तस्कीन की सूरत कोई ईजाद की ऐ ख़ुदाई के तलबगारो , रहे ये भी ख़याल हो गई मिस्मार पल भर में इरम शद्दाद की इश्क़ की पुख़्ता इमारत किस क़दर कमज़ोर थी ज़लज़ला आया कि ईंटें हिल गईं बुनियाद की जब अना क़त्ल-ए-तरब की ज़िद पे आमादा हुई हसरतों ने बख़्त के दरबार में फ़रियाद की कर लिया फ़ाक़ा , प फैलाया नहीं दस्त ए सवाल हर तरह हम ने भी रक्खी है वज़अ अजदाद की लूट लेती हैं नशिस्तें यूँ भी कुछ मुतशाइरात " दाद लोगों की , गला अपना , ग़ज़ल उस्ताद की" हम जूनून ए ख़ाम ले कर दर ब दर फिरते रहे किस तरह "मुमताज़" हम ने ज़िन्दगी बर्बाद की फ़ौलाद – स्टील , सय्याद – बहेलिया , मरहबा –सद आफ़रीं - तारीफ़ी जुमला , फ़न्न - ए - हयात – जीवन जीने की कला , दाम – जाल , जुनूँ – सनक , तस्कीन – राहत , ईजाद – खोज , मिस्मार – ढह जाना , इरम – शद्दाद की जन्नत...

इक यही आख़िरी हक़ीक़त है

इक यही आख़िरी हक़ीक़त है तेरी उल्फ़त मेरी इबादत है जान-ए-जाँ ये भी इक हक़ीक़त है मुझ को तेरी बहुत ज़रुरत है लूट का फ़न तवील क़ामत है आजकल आदमी की क़िल्लत है फ़ौत होने लगी है तारीकी एक उम्मीद की विलादत है मुझ को रखता है इक तज़बज़ुब में ये मेरे क़ल्ब की शरारत है छोटी छोटी हज़ार ख़ुशियाँ हैं इश्क़ में भी बड़ी नफ़ासत है खो गया जब क़रार तो जाना बेक़रारी में कितनी लज़्ज़त है जीतना , मुस्कराना , ख़ुश रहना ऐश में भी बड़ी मशक़्क़त है अब हवस का ही खेल है सारा " अब मोहब्बत कहाँ मोहब्बत है" ज़िन्दगी जिस को हम समझते हैं सिर्फ़ "मुमताज़" एक साअत है    ik yahi aakhiri haqeeqat hai teri ulfat meri ibaadat hai jaan e jaaN ye bhi ik haqeeqat hai mujh ko teri bahot zaroorat hai loot ka fan taweel qaamat hai aaj kal aadmi ki qillat hai faut hone lagi hai taariki ek ummeed ki wilaadat hai mujh ko rakhta hai ik tazabzub meN ye mere qalb ki sharaarat hai chhoti chhoti hazaar khushiyaaN haiN ishq meN bhi badi nafaasat hai ...

समझता है मेरी हर इक नज़र, हर ज़ाविया मेरा

समझता है मेरी हर इक नज़र , हर ज़ाविया मेरा न जाने कौन है वो अजनबी ,    वो रहनुमा मेरा सिमट   आता है हुस्न - ए - दोजहाँ   मेरे सरापा में जो बन जाती हैं उस की दो निगाहें आईना मेरा मुकफ़्फ़ल कर दिया था हर निशाँ दिल में , मगर फिर भी ज़माने पर अयाँ हो ही गया है अलमिया मेरा रखा था दुखती रग पर हाथ अनजाने में यादों ने ज़रा से लम्स ने फिर फोड़ डाला आबला मेरा शिकायत मैं करूँ भी तो अब इस से फ़ायदा क्या है हँसी में वो उड़ाता है , हमेशा , हर गिला मेरा जूनून-ए-सरफ़रोशी   की सनाख्वानी भी होनी है अभी तो ज़िन्दगानी पढ़ रही है मर्सिया मेरा मिटाता है , मिटा कर फिर कई आकार देता है मुक़द्दर रफ़्ता रफ़्ता ले रहा है जायज़ा मेरा ज़रा ठहरो , समेटूँ तो , मैं अपने मुन्तशिर टुकड़े हिला कर रख गया है ज़हन-ओ-दिल को सानेहा मेरा ये जंग ए हस्त-ओ-बूदी है , यहाँ हर कोई तनहा है मुझे सर करना है "मुमताज़" ये है मारका मेरा ज़ाविया – पहलू , सरापा – सर से पाँव तक , मुकफ़्फ़ल – ताला बंद , अयाँ – ज़ाहिर , अलमिया – दुख भरा वाक़या , लम्स – स्पर्श , आबला – छाला , गिला –...

वो निस्बतें, वो रग़बतें, वो क़ुरबतें कहाँ गईं

वो निस्बतें , वो रग़बतें ,        वो क़ुरबतें कहाँ गईं दिलों   में   जो   मक़ीम   थीं ,    हरारतें   कहाँ   गईं तराश डाला मसलेहत ने ज़हन - ओ - दिल का फ़लसफा बदलती   थीं   जो   पल ब पल तबीअतें ,   कहाँ गईं जदीदियत   की   जंग में   वो भोलापन भी खो गया वो बचपना ,   वो शोख़ी ,       वो शरारतें कहाँ गईं फ़ना हुईं वो यारियाँ ,     वो रस्म ओ राह अब कहाँ वो   सीधी सादी   ज़िन्दगी ,   वो   फ़ुरसतें   कहाँ गईं शिकस्त   खा   के   आज   क्यूँ   बिखर गए हैं हौसले उम्मीदें   फ़ौत   क्यूँ   हुईं ,   वो   हसरतें   कहाँ    गईं बदलता   वक़्त   खेल   का   मिज़ाज   भी बदल गया वो     प्यार   में     घुली   हुई      रक़ाबतें   कहाँ   गईं है   कौन   अब   ज...

ज़ालिम के दिल को भी शाद नहीं करते

ज़ालिम के दिल को भी शाद नहीं करते मिट जाते हैं , हम फ़रियाद नहीं करते चेहरा कुछ कहता है , लब कुछ कहते हैं शायद वो दिल से इरशाद   नहीं   करते आ पहुंचे हैं शहर - ए - ख़ुशी में उकता कर अब वीराने   हम   आबाद   नहीं   करते हर मौक़े पर गोहर लुटाना क्या मानी अश्कों को यूं ही बरबाद   नहीं   करते हर हसरत का नाहक़ खून   बहा   डालें इतनी भी अब हम बेदाद   नहीं   करते देते हैं दिल , लेकिन खूब   सहूलत   से अब तो कोहकनी फरहाद   नहीं   करते ज़हर खुले ज़ख्मों में बनने लगता   है " हम गुज़रे लम्हों को याद नहीं करते" बरसों रौंदे जाते   हैं ,   तब   उठते   हैं यूँ ही हम "मुमताज़" फ़साद नहीं करते   zaalim ke dil k bhi shaad nahiN karte mit jaate haiN, ham fariyaad nahiN karte chehra kuchh kehta hai, lab kuchh kehte haiN shaayad wo dil se irshaad nahiN karte aa pahnche haiN shehr e khushi meN ukta kar ab veeraane ham aabaad nahiN karte har mau...