वो निस्बतें, वो रग़बतें, वो क़ुरबतें कहाँ गईं
वो निस्बतें,
वो रग़बतें, वो क़ुरबतें कहाँ गईं
दिलों में जो मक़ीम
थीं, हरारतें कहाँ गईं
तराश डाला मसलेहत ने ज़हन-ओ-दिल
का फ़लसफा
बदलती थीं जो पल ब
पल तबीअतें, कहाँ गईं
जदीदियत की जंग में वो भोलापन भी खो गया
वो बचपना,
वो शोख़ी, वो शरारतें कहाँ गईं
फ़ना हुईं वो यारियाँ,
वो रस्म ओ राह अब कहाँ
वो सीधी सादी ज़िन्दगी, वो फ़ुरसतें कहाँ गईं
शिकस्त खा के आज क्यूँ बिखर
गए हैं हौसले
उम्मीदें फ़ौत क्यूँ हुईं, वो हसरतें
कहाँ गईं
बदलता वक़्त खेल का मिज़ाज भी
बदल गया
वो प्यार में
घुली
हुई रक़ाबतें
कहाँ गईं
है कौन अब जो डाल दे कमंद
आसमान पर
झुका दें आसमाँ को
जो वो हिम्मतें
कहाँ गईं
wo nisbateN, wo
raghbateN, wo qurbateN kahaN gaiN
diloN meN jo maqeem
thiN, haraarateN kahaN gaiN
taraash daala
maslehat ne zehn o dil ka falsafaa
badalti thiN jo pal
ba pal tabeeateN kahaN gaiN
jadeediyat ki jang
meN wo bholapan bhi kho gaya
wo bachpana, wo
shokhi, wo sharaarateN kahaN gaiN
fanaa huiN wo
yaariyaaN, wo rasm o raah ab kahaN
wo seedhi saadi
zindagi, wo fursateN kahaN gaiN
bikharne kyuN lage
haiN ab ye hausle shikast se
ummeedeN faut kyuN
huiN, wo hasrateN kahaN gaiN
badalta waqt khel ka
mizaaj bhi badal gaya
wo pyaar meN ghuli
hui raqaabateN kahaN gaiN
wo kaun hai, jo
aasmaaN pa daal de kamand ab
jhuka deN aasmaaN ko
jo, wo himmateN kahaN gaiN
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