वो निस्बतें, वो रग़बतें, वो क़ुरबतें कहाँ गईं
वो निस्बतें , वो रग़बतें , वो क़ुरबतें कहाँ गईं दिलों में जो मक़ीम थीं , हरारतें कहाँ गईं तराश डाला मसलेहत ने ज़हन - ओ - दिल का फ़लसफा बदलती थीं जो पल ब पल तबीअतें , कहाँ गईं जदीदियत की जंग में वो भोलापन भी खो गया वो बचपना , वो शोख़ी , वो शरारतें कहाँ गईं फ़ना हुईं वो यारियाँ , वो रस्म ओ राह अब कहाँ वो सीधी सादी ज़िन्दगी , वो फ़ुरसतें कहाँ गईं शिकस्त खा के आज क्यूँ बिखर गए हैं हौसले उम्मीदें फ़ौत क्यूँ हुईं , वो हसरतें कहाँ गईं बदलता वक़्त खेल का मिज़ाज भी बदल गया वो प्यार में घुली हुई रक़ाबतें कहाँ गईं है कौन अब ज...