कर्ब ए नारसाई
मोहब्बत ब ढ़ ती जाती है अज़ीअत ब ढ़ ती जाती है अभी तक तो मेरी आँखों में तेरा अक्स उतरा था अभी तक मेरी महसूसात का ये दिल ही क़ैदी था लहू रौशन था रग रग का अभी तक लम्स की ज़ौ से अभी जज़्बा तेरी बेसाख्ता जुरअत का आदी था मगर अब रफ़्ता रफ़्ता रूह क़ैदी होती जाती है मेरी हस्ती जहान ए यास में अब खोती जाती है मेरे जज़्बात की दुनिया में ये सैलाब है कैसा मेरी बेताब आँखों में न जाने ख़्वाब है कैसा नशीले ख़्वाब में पिन्हाँ अजब सी बेक़रारी है मेरे जज़्बात आँखों से टपक जाने के ...