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फ़ासला रक्खा, प हर रोज़ मुझे याद किया

फ़ासला रक्खा , प हर रोज़ मुझे याद किया उस सितमगर ने अनोखा सितम ईजाद किया वक़्त के हाथों से इफ़्लास जो मजबूर हुआ हर गुनह दिल ने पस - ए - ग़ैरत - ए - अजदाद किया दिल तो जलता रहे लेकिन न धुआँ उठ पाए मेरी क़िस्मत ने मेरा फ़ैसला इरशाद किया हाथ में अपने सिवा इस के रहा ही क्या है ज़िद में हम आए तो ख़ुद अपने को बरबाद किया ओढ़ कर तेरी तमन्ना का वो बोसीदा सा शाल " जब चली सर्द हवा मैं ने तुझे याद किया " दिल - ए - ज़िंदा में तमन्ना का जहाँ था " मुमताज़ " हम जो वीराने में पहुंचे , उसे आबाद किया فاصلہ   رکّھا , پہ   ہر   روز   مجھے   یاد   کیا اس   ستمگر   نے   انوکھا   ستم   ایجاد   کیا وقت   کے   ہاتھوں   سے   افلاس   جو   مجبور   ہوا ہر   گنہ   دل   نے   پس_غیرت_اجداد   کیا دل   تو   جلتا   رہے   لیکن   نہ ...

वफ़ा से, प्यार से, उम्मीद से भरा काग़ज़

वफ़ा से , प्यार से , उम्मीद से भरा काग़ज़ मिला है आज किताबों में वो दबा काग़ज़ किताब खोली तो क़दमों में आ गिरा काग़ज़ किस एहतेमाम से तू ने मुझे दिया काग़ज़ था भीगा अशकों से शायद कि जल बुझा काग़ज़ किसी के काम न आएगा अधजला काग़ज़ तो आज ख़त्म हुआ ख़त के साथ माज़ी भी हज़ार दर्द लिए ख़ाक हो गया काग़ज़ बिखेर डाले हैं अ ’ अज़ा तो रेल ने लेकिन अभी भी हाथ में है इक मुड़ा तुड़ा काग़ज़ गधा गधा ही रहेगा , करो हज़ार जतन न देगा इल्म इसे पीठ पर लदा काग़ज़ अभी भी रक्खा है “मुमताज़” डायरी में मेरी कहीं वो अश्कों से लिक्खा , कहीं मिटा काग़ज़

किरदार-ए-फ़न, उलूम के पैकर भी आयेंगे

किरदार - ए - फ़न , उलूम के पैकर भी आयेंगे मुस्तक़बिलों की गोद में बेहतर भी आयेंगे उम्मीद का किवाड़ खुला छोड़ दे रफ़ीक़ ऊबेंगे हम जो दश्त से तो घर भी आयेंगे लहरों से जंग करने का रखते हैं हौसला तो फिर हमारे हाथ में गौहर भी आयेंगे ज़ब्त - ए - सितम का ख़ुम भी छलक जाएगा कभी सैलाब ज़हर के कभी बाहर भी आयेंगे हम चूमने चले हैं फ़लक की बलंदियाँ क़दमों तले हमारे अब अख़्तर भी आयेंगे " मुमताज़ " जी ज़माने की बातों का खौफ़ क्या फलदार है दरख़्त तो पत्थर भी आयेंगे کردار_فن , علوم   کے   پیکر   بھی   آینگے مستقبلوں   کی   گود   میں   بہتر   بھی   آینگے امید   کا   کواڑ   کھلا   چھوڑ دے   رفیق اوبنگے   ہم   جو   دشت   سے   تو   گھر   بھی   آینگے لہروں   سے   جنگ   کرنے   کا   رکھتے   ہیں   حوصلہ تو   پھر   ہمارے...

मोड़ फिर आ गया फसाने में

मोड़ फिर आ गया फसाने में इश्क़ रुसवा हुआ ज़माने में हर हक़ीक़त भी एक धोका है और मज़ा है फरेब खाने में दिल में क्या क्या थे राज़ पोशीदा बरसों गुज़रे उसे बताने में रिज़्क़ तुझ को तलाश कर लेगा नाम लिक्खा है दाने दाने में एक पल में हयात रूठी थी उम्र गुज़री उसे मनाने में ग़म की दौलत से हाथ धो लेंगे क्या मिलेगा उसे भुलाने में खो गई है मेरी ज़मीं “मुमताज़” आस्माँ को ज़मीं पे लाने में

जमूद अंगेज़ ईमाँ में भंवर आना ज़रूरी है

जमूद अंगेज़ ईमाँ में भंवर आना ज़रूरी है अब इक तूफ़ान - ए - इबरत का इधर आना ज़रूरी है गुमाँ के मोड़ से आगे सफ़र जारी जो रखना हो तो फिर माज़ी के मरने की ख़बर आना ज़रूरी है बलंदी चाहिए परवाज़ में तो ऐ मेरे ख़्वाबो शजर पर दिल के हसरत का समर आना ज़रूरी है तरन्नुम से तो शे ’ रों में असर पैदा नहीं होता अदा से कुछ नहीं होता , हुनर आना ज़रूरी है हर इक उम्मीद की ज़ौ को सियाही खाए जाती है अब इस तारीक शब की तो सहर आना ज़रूरी है चराग़ - ए - दिल जलाने से भी तारीकी नहीं मिटती ज़मीं पर आसमाँ का अब उतर आना ज़रूरी है तमन्ना तोडती है दम , उम्मीदें बुझती जाती हैं किसी उम्मीद का " मुमताज़ " बर आना ज़रूरी है جمود   انگیز   ایماں میں   بھنور   آنا   ضروری   ہے اب   اک   طوفان_عبرت   کا   ادھر   آنا   ضروری   ہے گماں کے   موڑ سے   آگے   سفر   جاری   جو ...