मोड़ फिर आ गया फसाने में
मोड़ फिर आ गया फसाने
में
इश्क़ रुसवा हुआ ज़माने
में
हर हक़ीक़त भी एक धोका
है
और मज़ा है फरेब खाने
में
दिल में क्या क्या
थे राज़ पोशीदा
बरसों गुज़रे उसे बताने
में
रिज़्क़ तुझ को तलाश
कर लेगा
नाम लिक्खा है दाने
दाने में
एक पल में हयात रूठी
थी
उम्र गुज़री उसे मनाने
में
ग़म की दौलत से हाथ
धो लेंगे
क्या मिलेगा उसे भुलाने
में
खो गई है मेरी ज़मीं
“मुमताज़”
आस्माँ को ज़मीं पे
लाने में
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