वफ़ा से, प्यार से, उम्मीद से भरा काग़ज़
वफ़ा से, प्यार से, उम्मीद
से भरा काग़ज़
मिला है आज किताबों
में वो दबा काग़ज़
किताब खोली तो क़दमों
में आ गिरा काग़ज़
किस एहतेमाम से तू
ने मुझे दिया काग़ज़
था भीगा अशकों से शायद
कि जल बुझा काग़ज़
किसी के काम न आएगा
अधजला काग़ज़
तो आज ख़त्म हुआ ख़त
के साथ माज़ी भी
हज़ार दर्द लिए ख़ाक
हो गया काग़ज़
बिखेर डाले हैं अ’अज़ा तो रेल ने लेकिन
अभी भी हाथ में है
इक मुड़ा तुड़ा काग़ज़
गधा गधा ही रहेगा, करो हज़ार जतन
न देगा इल्म इसे पीठ
पर लदा काग़ज़
अभी भी रक्खा है “मुमताज़”
डायरी में मेरी
कहीं वो अश्कों से
लिक्खा, कहीं मिटा काग़ज़
Bahut khoob.
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