इक बार उन आँखों में इक़रार नज़र आए
इक बार उन आँखों में इक़रार नज़र आए बीनाई महक उट्ठे महकार नज़र आए एहसास हुआ हम को शिद्दत से तबाही का हम को ये गुल-ए-लाला बेकार नज़र आए चेहरे की लकीरों में क्या क्या न फ़साने थे आईने में माज़ी के असरार नज़र आए माज़ी की गली में हम ठहरे जो घड़ी भर को हर ज़र्रे में नम दीदा अदवार नज़र आए उस फ़र्द-ए-मुजाहिद से थर्राती हैं शमशीरें हाथों में क़लम जिस के तलवार नज़र आए तहज़ीबों की क़दरों पर शक होने लगा हम को हर सिम्त जो लाशों के अंबार नज़र आए उम्मीद लिए अक्सर उस राह से गुजरे हैं शायद वो कहीं हम को इक बार नज़र आए “मुमताज़” के हाथों में फ़न का वो ख़ज़ाना है जब हाथ ने जुंबिश की शहकार नज़र आए