कश्मकश


अजब सी कश्मकश में हूँ
अजब सी बेक़रारी है

कभी यादें, कभी सपने
वो बेहिस वक़्त की साज़िश
शिकस्ता हौसलों से फिर
कभी परवाज़ की कोशिश
चलूँ दो गाम
और फिर मैं थकन से चूर हो जाऊँ
इरादा ज़ेहन बाँधे
जिस्म से मजबूर हो जाऊँ
तमन्ना गाहे गाहे मुझ को बहकाए
बहक जाऊँ
दबी है कोई चिंगारी अभी दिल में
दहक जाऊँ
मगर फिर
मस्लेहत पैरों में बेड़ी दाल देती है
हमेशा
सर्द दानाई
जुनूँ को टाल देती है

अजब सी कश्मकश में हूँ
अजब सी बेक़रारी है

Comments

Popular posts from this blog

ज़ालिम के दिल को भी शाद नहीं करते