अब यहाँ कुछ बचा नहीं बाक़ी
अब यहाँ कुछ बचा नहीं बाक़ी
कोई ग़म तक रहा नहीं बाक़ी
कोई उम्मीद न हसरत न गुमाँ
अब कोई वसवसा नहीं बाक़ी
ले गई वक़्त की आँधी सब कुछ
एक भी नक़्श-ए-पा नहीं बाक़ी
आज लौटा दिया उसे हर ख़्वाब
कोई एहसाँ रखा नहीं बाक़ी
जिस में थी धुन्द बुझती यादों की
अब तो वो भी ख़ला नहीं बाक़ी
जी रहे थे तेरे तग़ाफुल पर
वो भी अब आसरा नहीं बाक़ी
बह गया अब तो दिल का सब लावा
ज़ब्त का वो नशा नहीं बाक़ी
दर्द हैं, उलझनें हैं, तूफ़ाँ हैं
मुझ में “मुमताज़” क्या नहीं बाक़ी
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