ज़र्ब सदमों की पड़ेगी तो सँवर जाएँगे
ज़र्ब सदमों की पड़ेगी तो सँवर जाएँगे
ज़ख़्म के रंग ज़रा और निखर जाएँगे
हम सफ़र सारे घरौंदों की तरफ़ चल निकले
और हम सोच रहे हैं कि किधर जाएँगे
वो मोहब्बत, वो तेरा लुत्फ़-ओ-करम और ख़ुलूस
हम ये सरमाया तेरी राह में धर जाएँगे
अपनी सोचो कि जो बिछड़े तो कहाँ जाओगे
हम तो ख़ुशबू हैं फ़ज़ाओं में बिखर जाएँगे
सिर्फ़ रह जाएँगे कुछ नक़्श हमेशा के लिए
ज़ख़्म तो ज़ख़्म हैं, कुछ रोज़ में भर जाएँगे
हर किसी नफ़्स को चखनी है क़ज़ा की लज़्ज़त
हम भी "मुमताज़" किसी रोज़ गुज़र जाएँगे
Comments
Post a Comment