क़स्द-ए-जाँ टूट गया, एहद-ए-वफ़ा टूट गया
क़स्द-ए-जाँ टूट गया, एहद-ए-वफ़ा टूट गया
एक ही
ज़र्ब में मिटटी का ख़ुदा टूट गया
आँख में चुभने लगीं किरचें तो एहसास हुआ
ख़्वाब के साथ मेरा ख़्वाब नुमा टूट गया
वक़्त की चाल में दुनिया ही उजड़ जाती है
क्या हुआ तेरा जो इक ख़्वाब ज़रा टूट गया
दिल से हम खेला किये थे, तो यही होना था
आइना छूट के हाथों से गिरा , टूट गया
ज़लज़ला आया था इस आलम ए
हस्ती में जो कल
एहतेसाब इस का ज़रूरी है
कि क्या टूट गया
अब करें भी तो तबाही का गिला किस से करें
रेत का घर हुआ सैलाब ज़दा, टूट गया
साथ था भीगी रुतों में तो हर इक एहद-ए-वफ़ा
तपते सहराओं में इक़रार तेरा टूट गया
उस के हाथों से कहाँ छूटी थी जज़्बात की डोर
मेरे हाथों में जो था वो ही सिरा टूट गया
आज फ़ुर्सत है तो कुछ सैर ज़रा बातिन की
जायज़ा लेने दे क्या बाक़ी है, क्या टूट गया
हिचकियाँ ऐसी बंधीं आलम
ए रिक़्क़त में कि फिर
"लब प आते ही हर इक
हर्फ़-ए-दुआ टूट गया"
तुम से क्या जुर्म हुआ , हम से कहाँ भूल हुई
कैसे "मुमताज़" ये रिश्तों का सिरा टूट गया
قصدِ جاں ٹوٹ گیا , عہدِ وفا ٹوٹ گیا
ایک ہی
ضرب میں مٹی
کا خدا ٹوٹ گیا
آنکھ میں
چبھنے لگیں کرچیں
تو احساس ہوا
خواب کے
ساتھ مرا خواب نما
ٹوٹ گیا
وقت کی
چال میں دنیا ہی اجڑ جاتی
ہے
کیا ہوا تیرا جو
اک خواب ذرا
ٹوٹ گیا
دل سے
ہم کھیلا کئے
تھے , تو یہی ہونا
تھا
آئینہ چھوٹ
کے ہاتھوں سے گرا
, ٹوٹ گیا
اب کریں بھی تو
تباہی کا گلا
کس سے کریں
ریت کا
گھر ہوا سیلاب زدہ, ٹوٹ گیا
ساتھ تھا بھیگی رتوں میں تو
ہر اک عہدِ وفا
تپتے صحراؤں
میں اقرار ترا
ٹوٹ گیا
اس کے
ہاتھوں سے کہاں
چھوٹی تھی جذبات
کی ڈور
میرے ہاتھوں
میں جو تھا وہ ہی
سرا ٹوٹ گیا
آج فرصت
ہے تو کچھ سیر
ذرا باطن کی
جائزہ لینے
دے کیا باقی
ہے , کیا ٹوٹ گیا
تم سے کیا جرم
ہوا , ہم سے کہاں
بھول ہوئی
کیسے "ممتاز " یہ رشتوں
کا سرا ٹوٹ گیا
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