दिल बता, क्या हुआ
दिल, मेरे दिल
क्या हुआ
बता
बेचैनियाँ बढ़ गईं
दिल बता, मेरे दिल बता, क्या हुआ
कब कहाँ लुट गया ये क़ाफ़िला
हर तरफ़ वही
ज़ख़्मी ख़ला
हर सिम्त तनहाई तनहाई तनहाई का सिलसिला
ख़ामोशियों की दीवारों में
है क़ैद मेरी सदा
ख़त्म पर है अज़ाबों का ये सर ब सर फ़ासला
काग़ज़ी ज़िंदगी वीरान है
दूर तक रास्ता सुनसान है
तन्हा है हर साँस
हर आस, उम्मीद बेजान है
कितने ही रेज़ों में बिखरी हुई मेरी पहचान है
शहर-ए-एहसास में आरज़ू आज हैरान है
हम कहाँ आ गए चलते हुए
ज़िन्दगी के वो पल क्या हो गए
वो हम सफ़र सारे हमराज़ जाने कहाँ खो गए
इस अजनबी राह में
तन्हा तन्हा से हम हैं खड़े
अपनी हस्ती का ऐ ज़िन्दगी कुछ पता तो चले
अजनबी है यहाँ हर एक पल
ऐ मेरी ज़िन्दगी
अब तो संभल
वहशत की जलती हुई ज़ख़्मी तारीकियों से निकल
बेचैनियों के सराबों से बच कर कहीं और चल
आरज़ूओं की नाकाम तक़दीर का
रुख बदल
x
Comments
Post a Comment