कोई ख़ुशी भी मिली तो अज़ाब की सूरत
कोई ख़ुशी भी मिली तो अज़ाब की सूरत
तमन्ना छलती है मुझ को सराब की सूरत
है अब भी क़ैद निगाहों में ख़्वाब की सूरत
“खिला खिला सा वो चेहरा गुलाब की सूरत”
हज़ार शोरिशें लाया वो ज़ख़्म दे के गया
मेरी हयात से गुज़रा शबाब की सूरत
करे वो प्यार तो एहसान की तरह अक्सर
है इल्तेफ़ात भी उस का इताब की सूरत
हमारे जुर्म और अपनी अताएँ गिनता है
वो कर रहा है शिकायत हिसाब की सूरत
लिखी हुई है कहानी तमाम हर्फ़ ब हर्फ़
फसाना कह गई सारा जनाब की सूरत
खुला किया है वो “मुमताज़” हम पे पै दर पै
पढ़ा किए हैं उसे हम किताब
की सूरत
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