यूँ निकले गरानी में कुछ अरमान वग़ैरह


यूँ निकले गरानी में कुछ अरमान वग़ैरह
आफ़त में फँसी ख़ूब मेरी जान वग़ैरह

क्या धंधा कबाड़ी का शुरू करने चले हो?
भर रखा है क्यूँ घर में ये सामान वग़ैरह

कुछ फूटो तो मुँह से कि कहाँ रात रहे थे
खाया है मियाँ दहन में क्या पान वग़ैरह

पूछूँ तो भला कैसे कि कब तक ये टिकेंगे
आए हैं मेरे घर में जो मेहमान वग़ैरह

निकला है मियाँ इश्क़ में ऐसा भी नतीजा
मुँह में न रहे एक भी दन्दान वग़ैरह

मेदे पे दिखाएगी ये कल अपना असर भी
खाई है अभी दाब के जो रान वग़ैरह

तोहफ़े में हसीना को दिया गोभी का इक फूल
आशिक़ के ख़ता रहते हैं औसान वग़ैरह

बूढ़ा हो कि बूढ़ी हो ज़रा मुर्ग़ा हो तगड़ा
खोले हैं कई इश्क़ की दूकान वग़ैरह

रमज़ान गया बीत, रिहा हो गए मुमताज़
अब तक जो रहे क़ैद वो शैतान वग़ैरह

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