दहका हुआ है दिल में जो शोला सा प्यार का

दहका हुआ है दिल में जो शोला सा प्यार का
चेहरे पे अक्स पड़ता है जलते शरार का

फूलों की नज़ाकत ने भी दम तोड़ दिया है
अब के अजीब आया है मौसम बहार का

क्या क्या थे हसरतों के भँवर उस निगाह में
उतरा है दिल में वार नज़र की कटार का

उसने भी आज जाग के काटी तमाम रात
कुछ तो असर हुआ निगह-ए-अश्कबार का

ज़ख़्म-ए-जिगर का अक्स पड़ा है कहाँ कहाँ
चेहरे पे अबके रंग अजब है निखार का

अंगड़ाई ले के उठती हैं सीने में हसरतें
मिलता है जब जवाब नज़र की पुकार का

इक रोज़ जो पिलाई थी उस निगह-ए-मस्त ने
अब तक ज़रा ज़रा है असर उस ख़ुमार का

उस हुस्न-ए-बेपनाह के आरिज़ की गर्मियाँ
मुमताज़ ख़ाक हो गया जंगल चुनार का


शरार अंगारा, निगह-ए-अश्कबार आँसू भरी आँख, निगह-ए-मस्त नशीली आँख, आरिज़ गाल, चुनार देवदार 

Comments

Popular posts from this blog

ज़ालिम के दिल को भी शाद नहीं करते