हर टीस को नग़्मों के अंदाज़ में ढाला है
हर
टीस को नग़्मों के अंदाज़ में ढाला है
जीने
का नया हम ने अंदाज़ निकाला है
करनी
में तबाही है, कथनी में उजाला है
यारान-ए-सियासत
का हर रंग निराला है
तस्वीर-ए-तमन्ना-ए-बेरंग
को भी हम ने
हर
रंग से सींचा है, हर रूप में ढाला है
नादान
तमन्ना को बहलाएँ तो अब कैसे
अब
तक तो हर इक ज़िद को उम्मीद पे टाला है
तारीकी
के पंजों ने जकड़ा है जो दुनिया को
सिमटी
सी तजल्ली है, सहमा सा उजाला है
इस
ज़हर-ए-ख़बासत का तर्याक़ मिले कैसे
ये
नाग तअस्सुब का हम ने ही तो पाला है
ये
वक़्त-ए-रवाँ भी तो मरहम न बना इसका
रह
रह के तपकता है, जो रूह पे छाला है
बाज़ी
पे सियासत की शरख़ेज़ हैं सब चालें
और
फ़िक्र पे पाबंदी, गुफ़्तार पे ताला है
क़िस्मत
के अँधेरों से “मुमताज़” को डर कैसा
अब
दूर तलक तेरी आँखों का उजाला है
यारान-ए-सियासत
–
राजनीतिज्ञ, तस्वीर-ए-तमन्ना-ए-बेरंग –
इच्छाओं की बेरंग तस्वीर, तारीकी – अँधेरा, तजल्ली – जगमगाहट, ख़बासत – बुराई, तर्याक़ – दवा, तअस्सुब – भेदभाव, वक़्त-ए-रवाँ – गुज़रता हुआ वक़्त, शरख़ेज़ – फ़सादी, गुफ़्तार – बात चीत
Comments
Post a Comment