अब जलन है, न कहीं शोर, न तन्हाई है

अब जलन है, न कहीं शोर, न तन्हाई है
चार सू बजती हुई मौत की शहनाई है

आज हर ख़्वाब-ए-परेशान से दिल बदज़न है
और तबीयत भी तमन्नाओं से उकताई है

याद रक्खूँ तो तुझे कौन सी सूरत रक्खूँ
भूल जाने में तो कुछ और भी रुसवाई है

आज फिर मैं ने मोहब्बत का भरम तोड़ दिया
आज फिर उससे न मिलने की क़सम खाई है

ज़हर पीते हैं तमन्नाओं की नाकामी का
हम ने हर रोज़ जो मरने की सज़ा पाई है

अब तो सौदा-ए-मोहब्बत का मदावा हो जाए
अब तख़य्युल को भी ज़ंजीर तो पहनाई है

हर तरफ़ आग है, हर सिम्त है नफ़रत का धुआँ
कैसी मंज़िल पे मुझे आरज़ू ले आई है

ख़्वाब में ही कभी आ जा कि मिटे दिल की जलन
ज़िन्दगी अब भी तेरी दीद की शैदाई है

हम को हर हाल में मुमताज़ सफ़र करना है
जब तलक जिस्म में ख़ूँ, आँख में बीनाई है


बदज़न नाराज़, सौदा-ए-मोहब्बत मोहब्बत का पागलपन, मदावा इलाज, तख़य्युल ख़याल, दीद की दर्शन की, शैदाई चाहने वाला, बीनाई देखने की क्षमता 

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