क्यूँ इतनी ख़ामोश है ऐ मेरी तन्हाई, कुछ तो बोल
क्यूँ
इतनी ख़ामोश है ऐ मेरी तन्हाई, कुछ तो बोल
रात
की इस वुसअत में आ, अब दिल के गहरे राज़ तो खोल
जंगल
जंगल, सहरा सहरा तेरा ये बेसिम्त सफ़र
भटकेगी
कब तक यूँ ही पागल, सौदाई, यूँ मत डोल
ये
जदीद दुनिया है, ग़रज़परस्ती अब फ़ैशन में है
प्यार, वफ़ा, मेहनत, ख़ुद्दारी, छोड़ो, इनका क्या है मोल
आज
के दौर में जीना, और फिर हँसना, हिम्मत वाले हो
पहनोगे
“मुमताज़” कहाँ तक ये ख़ुशआहंगी का ख़ोल
वुसअत
–
फैलाव, बेसिम्त – दिशा विहीन, सौदाई – पागल, जदीद – आधुनिक, ग़रज़परस्ती – ख़ुदग़रज़ी, ख़ुशआहंगी – खुशमिज़ाजी
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