मुंतशर जज़्बात ने सीने को ख़ाली कर दिया
मुंतशर
जज़्बात ने सीने को ख़ाली कर दिया
तार
कर डाला अना को हिस को ज़ख़्मी कर दिया
राहत-ओ-तस्कीन
को अब छोड़ कर आगे बढ़ो
मेरे
मुस्तक़बिल ने ये फ़रमान जारी कर दिया
क्या
हो अब रद्द-ए-अमल, कुछ भी समझ आता नहीं
अक़्ल
पर वहशत ने इक सकता सा तारी कर दिया
वो
भी था ज़ख़्मी, लहू में तर बदन उसका भी था
हम
ने उसकी जीत का ऐलान फिर भी कर दिया
धज्जियाँ
अपनी अना की उसके दर पर छोड़ दीं
क़र्ज़
ये उसकी अना पर हम ने बाक़ी कर दिया
जो
पस-ए-अल्फ़ाज़ था हम ने सुना वो भी मगर
उसने
जो हम से कहा हमने भी वो ही कर दिया
हम
मिटा आए हैं उसकी राह से हर इक निशाँ
जो
कि सोचा भी नहीं था, काम वो भी कर दिया
क़त्ल
कर डाला वफ़ा को तोड़ दी हर आरज़ू
एक
इस ज़िद ने हमें “मुमताज़” वहशी कर दिया
मुंतशर
–
बिखरा हुआ, तार कर डाला – फाड़ दिया, अना – अहं, हिस – भावना, तस्कीन – सुकून, मुस्तक़बिल – भविष्य, रद्द-ए-अमल
– प्रतिक्रिया, सकता – अवाक होना, पस-ए-अल्फ़ाज़ –
शब्दों के पीछे, वहशी – जंगली
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