हम को बादल के तअक़्क़ुब का सिला

हम को बादल के तअक़्क़ुब का सिला
सिर्फ़ तश्नालबी-ओ-प्यास मिला

बेहिसी का ये सिलसिला पैहम
अब तवक़्क़ोअ हमें न कोई गिला

राह आसाँ है पार क्यूँकर हो
हादसा भेज, कोई ज़ख़्म खिला

एक मुद्दत से ये घर तन्हा है
ऐ हवा छेड़ न कर, दर न हिला

हो उठे ज़िन्दा मनाज़िर सारे
बाग़-ए-माज़ी में जब वो फूल खिला

दर्द हद से गुज़र गया अब तो
हो न कोई दवा तो ज़हर पिला

और कुछ जब्र की रफ़्तार बढ़ा
ज़िन्दगी का मुझे एहसास दिला

कब तलक दश्त नवर्दी ऐ दिल
घर को चल, दर की भी ज़ंजीर हिला

तेरी बरबादी-ए-पैहम मुमताज़

है तेरी ख़ुशमज़ाक़ियों का सिला 

तअक़्क़ुब पीछा करना, तवक़्क़ोअ उम्मीद, मनाज़िर दृश्य, दश्त नवर्दी जंगल में भटकना, बरबादी-ए-पैहम लगातार बर्बाद होना 

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