अजमेर वाले ख़्वाजा कर दो करम ख़ुदारा
अजमेर वाले ख़्वाजा कर दो करम ख़ुदारा चमका दो आज मेरी तक़दीर का सितारा दुनिया में मुफ़लिसों का कोई नहीं सहारा जाएंगे अब कहाँ हम दामन यहीं पसारा सदक़ा नबी का मुझ को ख़्वाजा पिया अता हो झोली में मेरी भर दो हस्नैन का उतारा छंट जाए मेरे दिल से बातिल का सब अंधेरा नज़र-ए-करम का ख़्वाजा हो जाए इक इशारा अब तुम नहीं सुनोगे तो कौन फिर सुनेगा आ कर तुम्हारे दर पर मँगतों ने है पुकारा इक पल में दूर कर दी मेरी शिकस्ता हाली क़िस्मत मेरी बना दी ये है करम तुम्हारा कब से खड़े हैं दर पर हम रंज-ओ-ग़म के मारे इब्न-ए-सख़ी हो ख़्वाजा दामन भरो हमारा पहुंचा दिया है मुझ को क़िस्मत ने तेरे दर पर अब मेरी ज़िंदगी को मिल जाएगा सहारा आए हैं तेरे दर पर तक़दीर के सताए टूटे हुए दिलों को तेरे दर का है सहारा तूफ़ान में फंसी है मेरी शिकस्ता कश्ती कश्ती को मेरी ख़्वाजा दिखलाओ अब किनारा