Posts

हर मसलेहत शनासी का मे'यार देख कर

हर मसलेहत   शनासी का मे ' यार देख कर चलते हैं हम ज़माने की रफ़्तार देख कर उकता गई हूँ हसरत ए दीदार देख कर भरता कहाँ है दिल उसे इक बार देख कर हालात ज़िन्दगी के तो यूँ ही रहेंगे यार होना भी क्या है सुब्ह का अखबार देख कर अब तक इसी ज़मीर पे कितना ग़ुरूर था हम दम ब ख़ुद हैं क़िलआ ये मिस्मार देख कर बदला ज़रा जो वक़्त तो नज़रें बदल गईं डरता है दिल अज़ीज़ों का किरदार देख कर आवारगी ने ऐसा निखारा हमें कि हम अब चल पड़े हैं राह को दुश्वार देख कर ले कर सवाल पहुंचे थे उस के हुज़ूर हम लौट आए उस के होंटों पे इनकार देख कर हैरत ज़दा है ज़ेहन तो क़ासिर ज़ुबान है " मुमताज़" उन निगाहों कि गुफ़्तार देख कर ہر مصلحت شناسی کا معیار دیکھ کر چلتے ہیں ہم زمانے کی رفتار دیکھ کر اکتا گئی ہوں حسرتِ دیدار دیکھ کر بھرتا کہاں ہے دل اسے اک بار دیکھ کر حالات زندگی کے تو یوں ہی رہینگے یار ہونا بھی کیا ہے صبح کا اخبار دیکھ کر اب تک یسی ضمیر پہ کتنا غرور تھا ہم دم بہ خود ہیں قلعہ یہ مسمار دیکھ کر بدلا ذرا جو وقت تو نظریں بدل گئیں ڈرتا ہے دل عزیزوں کا کردار دی

ख़ाक हो जाउंगी माना कि बिखर जाऊँगी

ख़ाक हो जाउंगी माना कि बिखर जाऊँगी मलगुजे वक़्त में कुछ रंग तो भर जाऊँगी   जलते सहराओं से कर रक्खी है यारी मैं ने प्यास के सामने अब सीना सिपर जाऊँगी   एक इक कर के अलग हो गईं राहें सब की और मैं सोच रही हूँ कि किधर जाऊँगी हद्द - ए - बीनाई मेरे साथ ही चलती है मगर जुस्तजू में तेरी ता हद्द - ए - नज़र जाऊँगी   जाने किस रूप में अब वक़्त मुझे ढालेगा मैं जो टूटी हूँ तो कुछ और सँवर जाऊँगी दिल के वीराने में उतरे हैं ग़मों के साए तीरगी फैलेगी कुछ और तो डर जाऊँगी   बारहा उभरूँगी मैं इक नए सूरज की तरह " कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगी " बढ़ता जाएगा जो " मुमताज़ " ये वहशत का हिसार डर के ख़ुद अपने अँधेरों में उतर जाऊँगी   خاک   ہو   جاؤنگی, مانا   کہ   بکھر   جاؤنگی ملگجے   وقت   میں   کچھ   رنگ   تو   بھر   جاؤنگی جلتے   صحراؤں   سے   کر   رکھی    ہے   یاری   میں   نے پیاس   کے   سامنے   اب   سینہ   سپر   جاؤنگ

परों की कह्कशाओं तक रसानी देखते जाओ

परों की कह्कशाओं तक रसानी देखते जाओ जुनूँ की आँधियों पर हुक्मरानी देखते जाओ बिखरती है जो माज़ी की निशानी , देखते जाओ कभी अजदाद की कुटिया पुरानी देखते जाओ बरहना शाख़ पर हसरत की इक कोंपल उभरती है ख़िज़ाँ पर कैसे आती है जवानी , देखते जाओ मकीं है मुफ़लिसी अब उस हवेली की फ़सीलों में तो अब गिरती हैं क़दरें खानदानी , देखते जाओ अभी तक तो किताब - ए - ज़ीस्त के औराक़ सादा हैं लिखेगा वक़्त इन पर क्या कहानी , देखते जाओ निज़ाम - ए - तख़्त - ए - शाही पारा पारा है , मगर फिर भी अमीर - ए - शहर की ये लन्तरानी देखते जाओ मेरी गुफ़्तार की बेबाकी से तुम को शिकायत थी " कफ़न सरकाओ , मेरी बेज़ुबानी देखते जाओ " क़लम में बहते दरियाओं ने डेरा डाल रक्खा है जो है " मुमताज़ " शेरों में रवानी , देखते जाओ پروں   کی   کہکشاؤں   تک   رسانی   دیکھتے   جاؤ جنوں   کی   آندھیوں   پر   حکمرانی   دیکھتے   جاؤ بکھرتی   ہے   جو   ماضی   کی   ن