दहशतों की आज़माइश में उतर जाते हैं लोग
दहशतों की आज़माइश में उतर जाते हैं लोग ज़ब्त की हर इन्तहा से जब गुज़र जाते हैं लोग क्या ज़रूरी है कि उन के हाथ में तलवार हो नेज़ा - ए - अलफ़ाज़ से भी वार कर जाते हैं लोग ज़िन्दगी की जुस्तजू करते हैं आसारों में और इन बयाबानों में कुछ रौनक़ सी धर जाते हैं लोग मैं घिरी अपनी थकन में सोचती हूँ कब से ये तेज़ तूफानों को कैसे पार कर जाते हैं लोग कहकशाँ में ढूँढ़ते फिरते हैं अब जा - ए - पनाह इस ज़मीं का ख़ून कर के अर्श पर जाते हैं लोग ख़ौफ़ गुज़रे हादसों का ऐसा तारी है कि अब आहटें आएँ किसी की तो भी डर जाते हैं लोग कोई तो होगी कशिश इस दिल के वीराने में भी चलते चलते इस जगह अक्सर ठहर जाते हैं लोग दौर - ए - हाज़िर में ज़बानों की कोई क़ीमत है क्या " पहले कर लेते हैं वादा फिर मुकर जाते हैं लोग " इक तमाशा बन गया ' मुमताज़ " हर इक हादसा इक तमाशा देखने को फिर उधर जाते हैं लोग دہشتو