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दहशतों की आज़माइश में उतर जाते हैं लोग

दहशतों की आज़माइश में उतर जाते हैं लोग ज़ब्त की हर इन्तहा से जब गुज़र जाते हैं लोग क्या ज़रूरी है कि उन के हाथ में तलवार हो नेज़ा - ए - अलफ़ाज़ से भी वार कर जाते हैं लोग ज़िन्दगी की जुस्तजू करते हैं आसारों में और इन बयाबानों में कुछ रौनक़ सी धर जाते हैं लोग मैं घिरी अपनी थकन में सोचती हूँ कब से ये तेज़ तूफानों को कैसे पार कर जाते हैं लोग कहकशाँ में ढूँढ़ते फिरते हैं अब जा - ए - पनाह इस ज़मीं का ख़ून कर के अर्श पर जाते हैं लोग ख़ौफ़ गुज़रे हादसों का ऐसा तारी है कि अब आहटें आएँ किसी की तो भी डर जाते हैं लोग कोई तो होगी कशिश इस दिल के वीराने में भी चलते चलते इस जगह अक्सर ठहर जाते हैं लोग दौर - ए - हाज़िर में ज़बानों की कोई क़ीमत है क्या " पहले कर लेते हैं वादा फिर मुकर जाते हैं लोग " इक तमाशा बन गया ' मुमताज़ " हर इक हादसा इक तमाशा देखने को फिर उधर जाते हैं लोग دہشتو

उन की मर्ज़ी जो मोहब्बत को अता कहते हैं

उन की मर्ज़ी जो मोहब्बत को अता कहते हैं हम तो मजबूर तमन्ना को वफ़ा कहते हैं ज़ीस्त ही जब कि सरासर हो अज़ीयत तो फिर मौत को भी ग़म-ए-हस्ती की दवा कहते हैं खाक को सर पे उठाए जो फिरा करते हैं क्या अजब लोग हैं मिट्टी को ख़ुदा कहते हैं कहने वालों को तो कुछ चाहिए कहने के लिए क्या हुआ जो हमें कुछ लोग बुरा कहते हैं अपनी ठोकर पे रहा सारे ज़माने का निज़ाम हम फ़क़ीरों का है अंदाज़ जुदा , कहते हैं ज़िन्दगी से भी नहीं सब को मोहब्बत यारो साँस लेने को भी कुछ लोग सज़ा कहते हैं आज कह डाली है हर तल्ख़ हक़ीक़त उन से देखना ये है कि "मुमताज़" वो क्या कहते हैं  

मेरी गुस्ताख़ हसरत से ग़मों को सख़्त हैरत है

मेरी   गुस्ताख़ हसरत   से   ग़मों को   सख़्त हैरत   है उधर   बेचैन   है   क़ुदरत , इधर   गर्दिश   में   ख़ल्क़त है तड़प   कर   आह   करना   भी   मोहब्बत   में   बग़ावत है करे   फ़रियाद , सर   फोड़े , यहाँ   किस   को   इजाज़त   है मुझे   अपने   जुनूँ   पर   क्यूँ   न   आख़िर हो   ग़ुरूर इतना है तेरा ज़ुल्म गर दायम तो   मेरी   ज़िद   भी   मुसबत   है हर इक गुल   खिलखिलाने   के   लिए   बेताब   है   कब   से बहारों   के   त ' अक्क़ुब में   अभी   मसरूफ़ निकहत है तमन्ना   के   अलीलों   की   तड़प   देखी   नहीं   जाती कोई   दरमाँ नहीं   मिलता , परेशानी   में   हिकमत   है हमेशा   हुस्न   यूँ   भी   झुक   गया   है   इश्क़   के   आगे नज़र में क़ैद   हसरत से   ही   तो   जलवों   की   ज़ीनत   है ख़लील   ए   नातवां   को   आतिश   ए   नमरूद   से डर क्या त ' अस्सुब   सर   ब सजदा   है , मोहब्बत   की   करामत   है मोहब्बत है तो हस्त - ओ - बूद क्या , दिल क्या , अना कैसी " इबादत   और   ब क़द्र - ए - होश ? तौहीन - ए - इबा