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रात -दिन , सा'अत ओ लम्हात बदल जाते हैं

रात - दिन , सा ' अत   ओ   लम्हात   बदल   जाते   हैं शहर   तो   शहर   ख़राबात बदल   जाते   हैं हम   ने   देखे   हैं   कई   ऐसे   अदाकार   मियां ताड़   कर   रुख़   जो   हर   इक   बात   बदल   जाते   हैं बात   क्या   कीजिये   इन्सां के   बदल   जाने   की जब   के   इंजील   व   तौरात   बदल   जाते   हैं सब   क़यामत   के   हैं   आसार , ख़ुदा ख़ैर   करे आज   के   दौर   में   सादात   बदल   जाते   हैं वक़्त   के   साथ   बदलता   है   बशर   का   मौसम यूँ   भी   आदाब   ए मदारात   बदल   जाते   हैं वक़्त   पहचान   करा   देता   है   कुछ   लोगों   की बात   रह   जाती   है   हालात   बदल   जाते   हैं हसरतें   लेती   हैं   अंगडाई   तो   खिलता   है   दिमाग़ " प्यार   में   लोगों   के   जज़्बात   बदल   जाते   हैं " हम   ने   ' मुमताज़ ' तमाशा   ये   बहुत   देखा   है माल   जब   आता   है   तबक़ात बदल   जाते   हैं رات-دن , ساعت و   لمحات   بدل   جاتے   ہیں شہر   تو   شہر   خرابات   بدل   جاتے   ہیں ہم   نے   دیکھے  

ज़र्ब सदमों की पड़ेगी तो सँवर जाएँगे

ज़र्ब सदमों की पड़ेगी तो सँवर जाएँगे ज़ख़्म के रंग ज़रा और निखर जाएँगे हम सफ़र सारे घरौंदों की तरफ़ चल निकले और हम सोच रहे हैं कि किधर जाएँगे वो मोहब्बत, वो तेरा लुत्फ़-ओ-करम और ख़ुलूस हम ये सरमाया तेरी राह में धर जाएँगे अपनी सोचो कि जो बिछड़े तो कहाँ जाओगे हम तो ख़ुशबू हैं फ़ज़ाओं में बिखर जाएँगे सिर्फ़ रह जाएँगे कुछ नक़्श हमेशा के लिए ज़ख़्म तो ज़ख़्म हैं, कुछ रोज़ में भर जाएँगे हर किसी नफ़्स को चखनी है क़ज़ा की लज़्ज़त हम भी "मुमताज़" किसी रोज़ गुज़र जाएँगे

क़स्द-ए-जाँ टूट गया, एहद-ए-वफ़ा टूट गया

क़स्द - ए - जाँ टूट   गया , एहद - ए - वफ़ा   टूट   गया एक ही ज़र्ब में मिटटी का   ख़ुदा   टूट   गया आँख   में   चुभने   लगीं   किरचें   तो   एहसास   हुआ ख़्वाब   के   साथ   मेरा   ख़्वाब नुमा   टूट   गया वक़्त   की   चाल   में   दुनिया   ही   उजड़   जाती   है क्या   हुआ   तेरा   जो   इक   ख़्वाब   ज़रा   टूट   गया दिल   से   हम   खेला   किये   थे , तो   यही   होना   था आइना   छूट   के   हाथों   से   गिरा , टूट   गया ज़लज़ला आया था इस आलम ए हस्ती में जो कल एहतेसाब इस का ज़रूरी है कि क्या टूट गया अब   करें   भी   तो   तबाही   का   गिला   किस   से   करें रेत का   घर   हुआ   सैलाब ज़दा , टूट   गया साथ   था   भीगी   रुतों में   तो   हर   इक   एहद - ए - वफ़ा तपते   सहराओं   में   इक़रार   तेरा   टूट   गया उस   के   हाथों   से   कहाँ   छूटी थी   जज़्बात   की   डोर मेरे   हाथों   में   जो   था   वो   ही   सिरा   टूट   गया आज   फ़ुर्सत   है   तो   कुछ   सैर   ज़रा   बातिन   की जायज़ा लेने   दे   क्या   बाक़ी   है , क्या   टूट