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जो मुफ़्त में बंट रही हो इंग्लिश , तो क्या हलाल ओ हराम साहेब

जो   मुफ़्त   में   बंट रही   हो   इंग्लिश , तो   क्या   हलाल   ओ   हराम   साहेब " डटा   है   होटल   के   दर   पे   हर   इक , हमें   भी   दो   एक   जाम   साहेब " हज़ारे   की   बहती   गंगा   में   अब   नहा   रहे   बाबा   राम   साहेब हुआ   है   फैशन    में   मेंढकी   को , नया   नया   ये   ज़ुकाम   साहेब बरहना   होने   का    कॉमपेटीशन   ये दिलरुबाई के फ़ॉर्मूले जवान   शीला   हुई   है जब तो   है मुन्नी भी पक्का आम साहब कहीं   निगाहें , कहीं   निशाना   अगर है तो ये   सितम   भी   होगा नज़र   में   भर   कर   हसीन   जलवा , गिरे   ज़मीं   पर   धडाम   साहेब सितम   ये   महंगाई   का   तो देखो , कि रोटी भी अब है मन्न ओ सलवा यहाँ   पे   बस   आदमी   की   क़ीमत   हुई   है   आधी   छदाम   साहेब है   मुफ़्त   में   दस्तयाब   सब   तो   फ़िज़ूल   तकलीफ़   क्यूँ   उठाओ चुरा   के   अशआर   नाम   कर   लो , उडाओ   माल   ए   हराम   साहेब बुलंद   ' मुमताज़ ' है   वही   जो   लगाए   जितना   बटर    ज़ियादा निपोर   कर   चार

दिल में सैराबी का एहसास जगाना होगा

दिल   में   सैराबी   का   एहसास   जगाना   होगा थपकियाँ   दे   के   ज़रुरत   को   सुलाना   होगा अब   बने   या   न   बने , साथ   तो   ताउम्र   का   है अब   किसी   तौर   तो   क़िस्मत   से   निभाना   होगा आज   बंजर   है   ज़मीं   दिल   की , चलो   मान   लिया पत्थरों   में   भी   दबा   कोई   ख़ज़ाना   होगा रश्क   तारे   भी   करेंगे   मेरे   इन   अश्कों   पे जब   ये   सर   होगा   मेरा   और   तेरा शाना   होगा कब   तलक   काम   करेगी   ये   अदाकारी   भी एक   दिन   हम   को   ये   पर्दा   तो   गिराना   होगा तेरी   बदरूई   में   इतनी   है   कशिश   क्यूँ   आख़िर " ज़िन्दगी   आज   तुझे   राज़   बताना   होगा " दिल   में   ' मुमताज़ ' ये सहबा भी छुपा   कर   रख   लो फिर   मज़ा   देगा , जो   ये   दर्द   पुराना   होगा دل   میں   سیرابی   کا   احساس   جگانا   ہوگا تھپکیاں   دے   کے   ضرورت   کو   سلانا   ہوگا اب   بنے   یا   نہ   بنے , ساتھ   تو   تاعمر   کا   ہے اب   کسی   طور   تو   قسمت   سے   نبھانا   ہوگا

अब यहाँ कुछ बचा नहीं बाक़ी

अब यहाँ कुछ बचा नहीं बाक़ी कोई ग़म तक रहा नहीं बाक़ी कोई उम्मीद न हसरत न गुमाँ अब कोई वसवसा नहीं बाक़ी ले गई वक़्त की आँधी सब कुछ एक भी नक़्श-ए-पा नहीं बाक़ी आज लौटा दिया उसे हर ख़्वाब कोई एहसाँ रखा नहीं बाक़ी जिस में थी धुन्द बुझती यादों की अब तो वो भी ख़ला नहीं बाक़ी जी रहे थे तेरे तग़ाफुल पर वो भी अब आसरा नहीं बाक़ी बह गया अब तो दिल का सब लावा ज़ब्त का वो नशा नहीं बाक़ी दर्द हैं , उलझनें हैं , तूफ़ाँ हैं मुझ में “ मुमताज़ ” क्या नहीं बाक़ी