इस तरक़्क़ी का हमें इनआम ये कैसा मिला
इस तरक़्क़ी का हमें इनआम ये कैसा मिला दौर - ए - हाज़िर में हमें हर आदमी तन्हा मिला हर तअल्लुक़ ख़ाम , हर इक रिश्ता पेचीदा मिला मस्लेहत के रंग से ताबीर हर क़िस्सा मिला चार सू बिखरा हुआ एहसास का मलबा मिला लौट कर आए हैं जब भी , दिल का घर टूटा मिला उम्र भर लिखते रहे लेकिन किताब - ए - ज़ीस्त का जब भी देखा है पलट कर , हर वरक़ सादा मिला गौहर - ए - दिल , विरसा यादों का , ख़ज़ाना फ़िक्र का देख लो , बहर - ए - हवादिस से हमें क्या क्या मिला शोख़ियाँ , मासूमियत , स्कूल , झूला , बारिशें कितनी यादें साथ लाया , जब कोई बिछड़ा मिला उल्फ़तें हों , नफ़रतें हों , कर्ब हो , या हो ख़ुशी हम ने हर जज़्बा संभाला , जो मिला , जैसा मिला ज़िंदगी से गो शिकायत है , मगर सच तो ये है आज तक " मुमताज़ " हम ने जब भी जो चाहा , मिला ख़ाम - कच्चा , पेचीदा – काम्प्लिकेटेड , मस्लेहत – पॉलिसी , ताबीर – लिखा हुआ , सू – तरफ़ , ज़ीस्त – ज़िंदगी , वरक़ – पन्ना , गौहर - मोती , विरसा – विरासत