न जाने कौन है वो
न जाने कौन है वो अजनबी क्या नाम है उस का न जाने कब से इक एहसास बन कर आ गया है वो ख़यालों पर , तसव्वर पर ज़हन पर छा गया है वो न जाने कौन है वो अजनबी , क्या नाम है उस का घुली रहती है मेरी गरम साँसों में महक उस की मेरे चेहरे पे झुक जाती है साये सी पलक उस की बसा रहता है साँसों में वही मेहताब सा चेहरा कभी सरगोशियों में धड़कनों की लय सुनाता है कभी चुपके से इक उल्फ़त का नग़्मा गुनगुनाता है कभी उस के लबों का लम्स छू लेता है गालों को चुना करती हैं आँखें उस की नज़रों के उजालों को समंदर बनता जाता है मेरी तक़दीर का सेहरा मेरे जज़्बों की धड़कन है मेरी उल्फ़त का दिल है वो तसव्वर है , तख़य्युल है , कि ख़्वाब-ए-मुस्तक़िल है वो न जाने कौन है किस की इबादत करती रहती हूँ किसी एहसास के पैकर से उल्फ़त करती रहती हूँ मेरी तनहाई में रक़्साँ रहे वो अक्स , वो साया