दुनियादारी के सारे ढब आते हैं
दुनियादारी के सारे ढब आते हैं हम को भी अब सारे करतब आते हैं लाज़िम है तालीम भी लेकिन कुछ बच्चे खाना खाने को भी मकतब आते हैं कब से टाले वो हम को ये कह कह के आते हैं , अब आते हैं , अब आते हैं कितनी बातें सुनना चाहूँ मैं , लेकिन आते हैं जब वो , सी कर लब आते हैं मेरे अन्दर के बहर - ए - ख़ामोशी में कितने तूफाँ हर दिन या रब आते हैं मोड़ कोई क़िस्मत फिर लेने वाली है ख़्वाबों में अपने अब अक़रब आते हैं बेज़ारी , बेदाद , जफ़ा , ...