एक ग़ज़ल केजरीवाल की नज़्र
थोडा ज़ाहिर किया हक़,
थोडा छुपाया तुम ने
इक बंदरिया की तरह सच को नचाया तुम ने
मुल्क को यूँ भी लगा है ये सियासत का जुज़ाम
हो गया जिस्म लहू ऐसे खुजाया तुम ने
खुल के अफ़सोस करो,
ग़ैर प् इलज़ाम धरो
जल रहा था जो चमन,
क्यूँ न बुझाया तुम ने
वो भी बतलाओ ज़रा जनता को ऐ सच के अमीन
पद प् रहते हुए जो कुछ भी है खाया तुम ने
इन की दुम थाम,
किया पार सियासत का सिरात
और अब कर दिया अन्ना को पराया तुम ने
रह गईं अपना सा मुंह ले के किरन बेदी भी
अपने रस्ते से उन्हें ख़ूब हटाया तुम ने
वोट भी चंद मिलें तुम को तो कुछ बात भी है
शोर तो खूब बहरहाल मचाया तुम ने
Comments
Post a Comment