खिलने लगे हैं ज़ख़्म जो गुलज़ार की तरह


खिलने लगे हैं ज़ख़्म जो गुलज़ार की तरह
आँखों में फूल चुभने लगे ख़ार की तरह

कब से निभाए जाते हैं मजबूरियाँ भी हम
अब तो मोहब्बतें भी हुईं बार की तरह

अब हर क़दम पे रखते हैं सूद--ज़ियाँ का पास
रिश्ते निभाए जाते हैं ब्योपार की तरह

दिल की किरच किरच से सजाया है ज़ीस्त को
हम ग़म मनाते आये हैं त्योहार की तरह

हर इक अमल है मौजिज़ा हर इक अदा कमाल
कोई कहीं दिखाओ तो सरकार की तरह

यार राह--इश्क की रंगीनियाँ पूछ
"ज़ख़्म--जिगर हुए लब--रुख़सार की तरह"

"मुमताज़" तीरगी है, घुटन है, सुकूत है
दिल सर्द हो चुका है किसी ग़ार की तरह

کھلنے  لگے  ہیں  زخم  جو  گلزار  کی  طرح
آنکھوں  میں  پھول  چبھنے  لگے  خار  کی  طرح

کب  سے  نبھاۓ  جاتے  ہیں  مجبوریاں  بھی  ہم
اب  تو  محبتیں  بھی  ہوئیں  بار  کی  طرح

اب  ہر  قدم  پہ  رکھتے  ہیں صود و  زیاں  کا  پاس
رشتے  نبھاۓ  جاتے  ہیں  بیوپار  کی  طرح

دل  کی  کرچ  کرچ  سے  سجایا  ہے  زیست  کو
ہم  غم  مناتے  آے ہیں  تہوار  کی  طرح

ہر  اک  عمل  ہے  معجزہ  ہر  اک  ادا  کمال
کوئی  کہیں  دکھاؤ  تو  سرکار  کی  طرح

اے یار  راہ_عشق  کی  رنگینیاں  نہ  پوچھ
"زخم_ جگر  ہوئے  لب  و  رخسار  کی  طرح "

"ممتاز " تیرگی  ہے , گھٹن  ہے , سکوت  ہے
دل  سرد  ہو  چکا  ہے  کسی  غار  کی  طرح



Comments

Popular posts from this blog

ज़ालिम के दिल को भी शाद नहीं करते