भर गया अपनों से दिल, अब लोग अंजाने तलाश
भर गया अपनों से दिल, अब लोग अंजाने तलाश
इस तअस्सुब की ज़मीं
पर यार मैख़ाने तलाश
है वही मुंसिफ़, गवाह उस के, निज़ाम
उस का मगर
ख़ूँ शहादत देगा तू
क़ातिल के दस्ताने तलाश
दौर-ए-हाज़िर के सितम
से किस लिए मायूस है
जिन पे तेरा नाम हो
वह रिज़्क़ के दाने तलाश
गुम हुए सारे शनासा
अजनबी है हर मक़ाम
शहर हैं सुनसान अब
ऐ यार वीराने तलाश
आदमी के फ़ैल से शैतानियत
है शर्मसार
आदमीयत के नए अब कोई
पैमाने तलाश
जाने हम को ज़िन्दगी
ने ये कहाँ पहुंचा दिया
अजनबी बस्ती में कुछ
चेहरे तो पहचाने तलाश
मंदिर-ओ-मस्जिद तो
अब “मुमताज़” बेगाने हुए
अब इबादत के लिए दिल
के वो बुतख़ाने तलाश
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