हर याद तेरी दिल से इस तरह मिटा दी है
हर याद तेरी दिल से इस तरह मिटा दी है
माज़ी में कहीं तेरी तस्वीर दबा दी है
सुलझाई हैं हम ने भी गिरहें सभी धागों की
हिम्मत भी हमें उस ने तक़दीर कुशा दी है
मरने का सलीक़ा है , जीने की हमें ज़िद है
जब बुझने लगीं साँसें लौ और बढ़ा दी है
आसाँ हो सफ़र उन का आएं जो तअक्क़ुब में
जिस राह से गुज़रे हम इक शमअ जला दी है
अल्लाह को क्यूँ दें हम इलज़ाम तबाही का
जज़्बात दिए उस ने फिर फ़हम ओ ज़का दी है
सदक़े
मैं तेरे साक़ी, क्या अद्ल किया तू ने
"रिन्दों की ख़ताओं पर प्यासों को सज़ा दी है"
ये ज़हर ए बक़ा हम को पीना ही पड़ेगा अब
"मुमताज़"
हमें उस ने जीने की सज़ा दी है
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