हर आरज़ू को लूट लिया ऐतबार ने
हर आरज़ू को लूट लिया ऐतबार
ने
पहुँचा दिया कहाँ
ये वफ़ा के ख़ुमार ने
मुरझाए गुल, तो ज़ख़्म खिलाए
बहार ने
"दहका दिया है
रंग-ए-चमन लालाज़ार ने"
पलकों में भीगा
प्यार भी हम को न दिख सका
आँखों को ऐसे ढाँप लिया
था ग़ुबार ने
क्या दर्द है
ज़ियादा जो रोया
तू फूट कर
पूछा है आबलों
से तड़प कर ये ख़ार ने
किरदार आब आब शिकारी का
हो
गया
कैसी नज़र से देख लिया
है शिकार ने
गोशों में रौशनी
ने कहाँ दी हैं दस्तकें
"मुमताज़"
तीरगी भी अता की
बहार ने
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