तड़प को हमनवा, रूह-ओ-बतन को कर्बला कर लो

तड़प को हमनवा, रूह-ओ-बतन को कर्बला कर लो
ज़रा कुछ देर को माज़ी से भी कुछ सिलसिला कर लो

इबादत नामुकम्मल है अधूरा है हर इक सजदा
असास-ए-ज़ह्न-ओ-दिल को भी न जब तक मुब्तिला कर लो

थकन को पाँव की बेड़ी बना लेने से क्या होगा
सफ़र आसान हो जाएगा, थोड़ा हौसला कर लो

यही तनहाई तुम को ले के फिर जाएगी मंज़िल तक
जुनूँ को राहबर कर लो, ख़ुदी को क़ाफ़िला कर लो

बलन्दी भी झुकेगी हौसले के सामने बेशक
जो ख़ू परवाज़ को, काविश को अपना मशग़ला कर लो

सुलग उट्ठे हर इक एहसास हर इक ज़ख़्म खिल उट्ठे
अगर अपनी तमन्नाओं से भी कुछ सिलसिला कर लो

सियाही जो निगल जाए सरासर रौशनी को भी
तो फिर हक़ है कहाँ बातिल है क्या ख़ुद फ़ैसला कर लो

ज़माने भर से नालाँ हो, शिकायत है ख़ुदा से भी
कभी मुमताज़ अपने आप से भी तो गिला कर लो

 

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