लालच


नहीं है बेसबब ये आबिद-ए-मक़सूर का लालच
हमें ख़ौफ़-ए-ख़ुदा है, शेख़ को है हूर का लालच

ये ग़ैरों की क़यादत, ये सियासी पल्टियाँ इन की
इन्हें हर दम रहा है मुर्ग़ी-ए-तंदूर का लालच

हटाओ ऐ मियाँ, बस माल आता है तो आने दो
हमेशा बढ़ता रहता है दिल-ए-मसरूर का लालच

कभी आँखों से ज़ाहिर है हवस की काइयाँ गीरी
कभी दिल में निहाँ है बादा-ए-अंगूर का लालच

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