एहसास-ए-रेग-ए-जाँ में वो सराब का तअक़्क़ुब


एहसास-ए-रेग-ए-जाँ में वो सराब का तअक़्क़ुब
कब तक करोगे आख़िर इक ख़्वाब का तअक़्क़ुब

हमें दे रहा है धोका ये हुबाब का तअक़्क़ुब
अभी उम्र कर रही है जो शबाब का तअक़्क़ुब

दिखलाएँ जाने क्या क्या ये तक़ाज़े मसलहत के
ख़ुर्शीद सी तबीयत, मेहताब का तअक़्क़ुब

ये करिश्मा भी है मुमकिन जो बलन्द हो इरादा
कोई नाव कर रही हो गिर्दाब का तअक़्क़ुब

ये जुनूँ की आज़माइश, ये है वहशतों की साज़िश
मुझे मार ही न डाले ये अज़ाब का तअक़्क़ुब

कभी ज़ेहन दर ब दर है, कभी मुंतशिर तबीअत
वही इज़्तराब-ए-पैहम सीमाब का तअक़्क़ुब

कभी कोई पल सुकूँ का न हुआ नसीब मुझ को
मेरी ज़िन्दगी मुसलसल सैलाब का तअक़्क़ुब

तुझे तोड़ देगा आख़िर ये तेरा जुनून-ए-बे जा
मुमताज़ तर्क कर दे नायाब का तअक़्क़ुब


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