नूर ये किस का रोज़ चुरा कर लाए ये मेहर-ए-ताबाँ
नूर ये किस का रोज़ चुरा कर लाए ये मेहर-ए-ताबाँ
रोज़ समंदर की मौजों पर कौन बिखेरे अफ़शाँ
टूट गए सब प्यार के टाँके ज़ख़्म हुआ है उरियाँ
तेज़ हुई लय दर्द की यारो हार गया हर दरमाँ
इश्क़ की बाज़ी, जान का सौदा, दाग़, सितम, रुसवाई
चार क़दम दुश्वार है चलना, राह नहीं ये आसाँ
जितनी बढ़ी सैलाब की शिद्दत उतना जुनूँ भी मचला
नाव शिकस्ता पार हुई, हैरान खड़ा है तूफ़ाँ
ख़ास हुई इख़लास की ज़ौ फिरती है वफ़ा आवारा
इश्क़ भी है इफ़रात में हासिल, और हैं दिल भी अर्ज़ाँ
जीत गया तू हार के भी हर दाँव शिकस्त-ए-दिल का
हार गए हम जीत के भी पिनदार की बाज़ी जानाँ
आज हुआ “मुमताज़” मुकम्मल इश्क़ का वो अफ़साना
टूट गई ज़ंजीर वफ़ा की तंग हुई जब जौलाँ
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