न सेहरा में भटके, न सागर खंगाले
न सेहरा में भटके, न सागर खंगाले
कहाँ तक कोई आरज़ू को संभाले
बड़ी देर से मुंतज़िर हैं उम्मीदें
मुक़द्दर तमन्ना को वादों पे टाले
अभी मसलेहत की सदा रायगाँ है
अभी तो ख़िरद है जुनूँ के हवाले
जुनूँ से कहो, तोल ले अपनी हस्ती
इरादे से कह दो कि पर आज़मा ले
तख़य्युल पे है तीरा बख़्ती का पहरा
ज़ुबाँ पर लगे हैं ख़मोशी के ताले
अब इस के लिए उस को तकलीफ़ क्या दें
चलो ख़ुद ही हम फोड़ लें दिल के छाले
निसार इस जुनूँ के कि दीवानगी में
मुक़द्दर के हम ने कई बल निकाले
तुम्हें नुक्ताचीनो दिखाएंगे हम भी
ज़फ़र याब होंगे सई करने वाले
फिराए ख़िरद को न जाने कहाँ तक
तसव्वर के “मुमताज़” हैं ढब निराले
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