ग़ज़ल - इक तख़य्युल जो आस पास रहे



इक तख़य्युल जो आस पास रहे
रतजगों में वही मिठास रहे
اک تخیل جو آس پاس رہے
رتجگوں میں وہی مٹھاس رہے

है इरादा अना का और ही कुछ
आरज़ू मस्लेहत शनास रहे
ہے ارادہ انا کا اور ہی کچھ
آرزو مصلحت شناس رہے

खुल न जाए ये वहशतों का भरम
रात की तीरगी उदास रहे
کھل نہ جاۓ یہ وحشتوں کا بھرم
رات کی تیرگی اداس رہے

ख़्वाहिशों की हसीन राहों में
ज़िन्दगी महव-ए-इल्तेमास रहे
خواہشوں کی حسین راہوں میں
زندگی محوِ التماس رہے

उम्र भर साथ साथ चलते रहे
ज़ीस्त से फिर भी नाशनास रहे
عمر بھر ساتھ ساتھ چلتے رہے
زیست سے پھر بھی ناشناس رہے

जुस्तजू में कमी न हो मुमताज़
मुझमें बाक़ी कोई तो प्यास रहे
جستجو میں کمی نہ ہو ممتازؔ
مجھ میں باقی کویء تو پیاس رہے

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